दीक्षांत व्याख्यान, गुजरात विद्यापीठ

गुजरात विद्यापीठ की कुलाधिपति इला बहन, कुलपति महोदय डॉ राजेंद्र भाई खिमानी, ट्रस्टीज, अध्यापक गण, स्नातक छात्र और छात्राएं, देवियों और सज्जनों,

इस दीक्षांत समारोह में आपने मुझे आमंत्रित किया, इसके लिए तहे दिल से धन्यवाद स्वीकार कीजिए। सबसे पहले, स्नातक बनने वाले प्रिय छात्र-छात्राओं को बधाई – यह वह दिन है जिसका हर स्नातक को बेसब्री से इंतज़ार रहता है| आज हम आपके और आपके प्रयासों का जश्न मानाने  के लिए  एकत्रित हुए हैं । आप  विद्यापीठ के संस्थापक गांधीजी के  विचारों के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि  आपकी शिक्षा में रही है शांति और सत्य के मूल्यों की कल्पना और सहनशीलता की महक|

मुझे सबसे पहले उन सभी परिवारों को याद करना चाहिए जो इस  भयानक महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। हमारे छात्र, जो आज स्नातक  बन रहे हैं, हाल की पीढ़ियों में अनूठे हैं क्योंकि उन्होंने स्नातक परीक्षा के अलावा अधिक कठिन इम्तहान दिया है और अपने आप में लचीलापन ला पाए हैं ताकि इसका सामना हिम्मत और इंसानियत के साथ कर सकें । आपने सामाजिक उथल-पुथल का अनुभव किया है, आप एक अधूरी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर भी हुए, और आपने बहुत काम उम्र में दर्द का एहसास किया है। गांधीजी के उसूलों का विश्वास और इस वैश्विक महामारी से निकल कर आने का एहसास, आपको जीवन की हर परीक्षा के लिए तैयार करा चुका है| यह हिम्मत तो आपको विद्यापीठ से विरासत में मिली है और आप को इस पर गर्व होना चाहिए|

आज मैं आपसे दो चीजों के बारे में बात करना चाहता हूं | पहली, जब आप ग्रेजुएट  हो कर निकलेंगे तो आपको दुनिया भर में किस तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे? आपके आसपास की दुनिया कैसे बदल रही है? और दूसरी बात, इस बदलती दुनिया में निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए आपको अपनी शिक्षा का उपयोग कैसे करना चाहिए? मूल रूप से, आज के माहौल में शिक्षा का क्या तात्पर्य है? क्या शिक्षा हमें देश की उन चुनौतियों का सामना करना सिखाती है जो मानवता और भाईचारे के सिद्धान्तों का उलंघन करती हैं?

मैं तीन बदलावों के बारे में बात करना चाहता हूँ जो हमारे जीने के तरीके, हमारे सोचने के तरीके, और हमारे कार्य करने के तरीके को मूलतः प्रभावित कर रहे हैं। यह तीन परिवर्तन इस प्रकार हैं  –  पहला, टेक्नोलॉजी या प्रौद्योगिकी | दूसरा, शहरीकरण और उनसे जुड़े हुए मुद्दे, रोज़गार और क्लाइमेट चेंज | और तीसरा है, डेमोक्रेसी या जनतंत्र | ये सवाल एक दूसरे से  बहुत ही गंभीरता से जुड़े हुए हैं | सवाल यह है कि  ये आप को कैसे प्रभावित कर रहे हैं और जैसे आप वास्तविक या असली दुनिया में प्रवेश करेंगे तब  कैसे प्रभावित करेंगे और आप की संभावित प्रतिक्रियाएं क्या हो सकती हैं |

प्रौद्योगिकी ने, टीवी और इंटरनेट ने विशेष रूप से, हमें दूसरों के जीवन और उनके विचारों के करीब ला दिया है| जब हम आपकी उम्र के थे, एक छोटे शहर से दिल्ली आना, विदेश आने की तरह था| आज ग्रामीण युवाओं की आकांक्षाएं सारी दुनिया से ली गई हैं। टेक्नोलॉजी उन्हें दुनिया में होने वाली घटनाओं से अवगत कराती हैं| जब किसी फैक्ट्री में या किसी दफ्तर में काम मिलता है तो वहां टेक्नोलॉजी की पूरी तरह से उपयोगिता और प्रभाव दीखता है|

प्रौद्योगिकी व्यापक तो ज़रूर हो गई है। आप पूरी दुनिया को अपनी जेब और अपने पर्स में समेट कर रखते हैं, या कम से कम हम यही सोचते हैं। हम दूसरों तक जल्दी पहुंच सकते हैं, डिजिटल रूप से| यदि हम चाहें तो एक-दूसरे को अधिक बार देखते हैं; यह जान सकते है कि दूसरे क्या सोचते हैं, दूसरे क्या करते हैं, दूसरों का व्यवहार कैसा है, दूसरे स्थान कैसे दिखते हैं, दूसरे क्या खाते हैं, वे कैसे कपड़े पहनते हैं, आदि। हम दूसरों के द्वारा अपनी सोच को आकार देते हैं। इसमें से कुछ बातें बहुत सकारात्मक हैं – क्योंकि यह हमें अपने पूर्वाग्रहों  को दूर करने में मदद करती हैं। यह एक तरफ हमें और हमारे जीवन को और अधिक बेहतर बना रही है। हालाँकि, उस प्रक्रिया में, हम ठहर कर मूलतः सोचने की अपनी क्षमता को भी खोते दिखाई दे रहे हैं।

टेक्नोलॉजी का वादा था कि इसकी मदद से हम  अपने आपको बेहतर तरीके से समझ सकेंगे और सुधार सकेंगे| यह किसी ने नहीं सोचा था कि इससे हम सब एक दूसरे के ‘क्लोन’ बनते चले जायेंगे – सब एक तरह से दिखने की कोशिश करेंगे, सब एक तरह से बात करेंगे और सबसे महत्त्वपूर्ण, एक ही तरह से सोचेंगे|  टेक्नोलॉजी से अपेक्षा थी कि वह हमारे व्यक्तिगत विशिष्ट सोच का विकास करने में सहायक होगी|  क्या हम सोच पा रहे हैं कि आज की वास्तविकता क्या है? राजनीतिज्ञ जो बता रहे हैं, उसमें कितना सत्य है, क्या समझ पा रहे हैं? क्या हम सोच  रहे कि जब पब्लिक इंटेलेक्चुअल कुछ बताते हैं, तो उनके तथ्य क्या शोध पर आधारित हैं या नहीं?

कोई विचार या कोई  व्यक्ति जो  आपको दूसरों की तरह व्यवहार करने को मजबूर करता है या आपको बताता है कि आप किसी स्वयं निर्मित समाज के मापदंडों के अनुरूप नहीं हैं, तो हमें उन पर निश्चित रूप से सवाल उठाना  चाहिए | मनुष्य के लिए उसकी अपनी विशेषता, अपनी स्वतंत्र सोच और एक समुदाय को  जोड़ कर रखने का विचार ही एक सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य हो सकता है| इसके लिए यह ज़रूरी है कि हम अपने दिल और दिमाग से यह सुनें कि हम क्या सोच रहे हैं न कि टेक्नोलॉजी हमें क्या बता रही है|

दूसरा विषय है शहरीकरण या urbanization| पहली बार हम देखते हैं कि भारत की आधे से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है | 2011  की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत का 31% हिस्सा शहरी है, लेकिन उपग्रह की छवियों से पता चलता है कि भारत की शहरी आबादी उस आंकड़े से दोगुने से भी अधिक है। गांवोँ  का परिवर्तन और वह सब कुछ जो ग्रामीण जीवन से सम्बंधित है, बदल रहा है। गाँव से शहर की तरफ युवाओं का  आगमन तो काफी समय से लगा हुआ है लेकिन उसकी मात्रा में काफी बदलाव हुआ है |  इसके दो प्रमुख सामाजिक प्रभाव रहे हैं – एक सकारात्मक परिणाम है, शहर का लोकतंत्रीकरण और साथ में सामाजिक गतिशीलता | और दूसरा, जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, वह है ग्रामीण क्षेत्रों की अपनी पहचान और प्रतिभा की उपलब्धता का चला जाना । इस बात को थोड़ा और आगे बढ़ाते हैं | भारत के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में कुछ सुविधायें तो ज़रूर पहुँच गयी हैं, जैसे स्कूल और कॉलेज, इंटरनेट सर्विसेज, नये खाने पीने या पहनने की चीज़ें, इत्यादि | 2011  की अंतिम सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना से पता चलता है कि लगभग आधे ग्रामीण परिवार, जो देश में 24.39 करोड़ परिवारों में से 17.11 करोड़ हैं, अभी भी नयी skills वाली सार्थक़ नौकरियां या  वैल्यू ऐड एंट्रेप्रेन्योरशिप, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, साफ़ सुथरे मोहल्ले और उनसे जुड़ी सेवाओं इत्यादि से वंचित हैं। यही ज्यादातर छोटे शहरों  का भी हाल है | एक उच्च गुणवत्ता वाली  सार्थक समकालीन जिंदगी (high quality contemporary life) बस गायब है | तो शहर की तरफ पलायन के विचार तो ज़ाहिर है, होंगे|

उसी  2011  की अंतिम सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना से से यह भी पता चला कि 30.10% ग्रामीण परिवार खेती में शामिल थे, 55.14%  हाथ से किए जानेवाले आकस्मिक श्रम में शामिल थे, 14.01% सरकारी और प्राइवेट नौकरी  पर निर्भर हैं, घरेलू सेवा पर 2.5%, स्वयं के कृषि उद्यम पर 1.61%, भीख मांगने पर 0.37% और कूड़ा उठाने पर 0.23% निर्भर हैं । यह एक चलनेवाला  विकास नहीं है – उसी तरह जैसे काम करने के लिए हर दिन दो घंटे यात्रा करना, उन चुनौतियों पर काम करना जिसमे आपको दिलचस्पी नहीं हो, उस माहौल में काम करना जहाँ कार्य जीवन अनिश्चित और आकस्मिक हो, इत्यादि | यह एक अपूर्णता की ओर ले जाता जीवन है जो असंतोष और जल्दी ही फुँक जाने की आशंका से भरा हुआ है। तो मैं आपको यही कहना चाहता हूँ कि आप ऐसे अवसरों की तलाश करें और ऐसे अवसरों के निर्माण में मदद करें, ऐसे रास्ते को पकड़ें जो जीवन की एक संतुलित, दीर्घकालिक गुणवत्ता (long term quality of life) बनाए रखने में मदद करे  चाहें वह एक छोटे गांव, एक छोटी कंपनी, या छोटे शहर में क्यों न हो|

तीसरा मुद्दा है डेमोक्रेसी या जनतंत्र का | हम विश्व स्तर पर बहुत प्रबल रूप से अनुभव कर रहे हैं कि जनतंत्र का वादा सिर्फ मतदान के अधिकार से कहीं अधिक है। चीन से लेकर अफगानिस्तान तक, ब्राजील से लेकर वेनेजुएला तक, मिस्र से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक नागरिकों के अधिकारों और उनकी आवाज़ को लगातार बाधित किया जा रहा है।  सहनशीलता की प्रतिदिन परीक्षा ली जा रही है। हम आपस के अंतर को समझने की चेष्टा ही नहीं  कर रहे हैं| न ही हम विविधिता का मूल्य समझ पा  रहे हैं या उसे बढ़ावा दे रहे हैं| असहमति, विरोध की प्रक्रिया देखी जाने लगी है, उसको हर तरफ़  दबाया जा रहा है जिसकी वजह से आम  जीवन और राजनीतिक वातावरण, दोनों, आक्रामकता और असहनशीलता की ओर बढ़ते नज़र आते हैं | लोग अपनी पक्षपाती पूर्व धारणाएँ ले कर चलते हैं और उसी नज़रिये से दूसरों को देखते हैं | ऐसा लगता है कि अब हमारे बीच कोई सांझी समझ ही नहीं है कि एक अच्छे और परवाह करने वाले लोकतांत्रिक समाज की मूलभूत विशेषताएं या खूबियां  क्या हैं और इसके नागरिकों की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां क्या हैं। पिछले साल, 163  देशों में से 92  में शांति का सूचकांक गिर गया था। भारत उनमें से एक था और उसे शांति के मामले में निम्न श्रेणी में रखा गया था। यहां मेरा यह सुझाव है कि जनतंत्र को बढ़ाने के लिए जो विचार हमारे सोच  से विपरीत हैं, उन्हें भी समाज के सामने रखने देना होगा| एक स्वार्थी विचार भी इससे जुड़ा है – अगर हम अपने विचारों को व्यक्त करने के अधिकार की रक्षा चाहते हैं तो हमें उन लोगों की आवाज़ की भी रक्षा करनी होगी जिनके विचारों से हम असहमत हैं| 

यह मुझे इस संबोधन के दूसरे भाग में ले आता  है – शिक्षा हमें क्या बताती है कि हम इस बदलती दुनिया में रास्ता कैसे बनाएँ, इससे कैसे अपना रिश्ता बनाएँ| मूल रूप से, शिक्षा का उद्देश्य क्या है और क्या हमारी शिक्षा प्रणाली इस उद्देश्य को पूर्ण कर रही है? में एक शिक्षक हूँ तो इसके बारे में कुछ बोलना चाहूंगा |

शिक्षा विद्या के बारे में है, लेकिन विद्या हुनर हासिल करने से कहीं ज़्यादा है, वैचारिक सोच या conceptual thinking से भी कहीं ज़्यादा है – यह आपके आस-पास के वातावरण को समझने और परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को समझने के बारे में है। यही तो शिक्षा का व्याकरण है!

मेरे विचार से शिक्षा के चार उद्देश्य हैं। आजीविका कमाने की क्षमता। जीवन भर सीखने की चाह विकसित करना। एक राष्ट्र और दुनिया के लिए एक नागरिक का निर्माण। चौथे उद्देश्य को निदा फ़ाज़ली साहब के शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है – जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ़ नहीं, उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाए।  आज के माहौल में, शिक्षकों  और शिक्षा संस्थाओं,  को इन  उद्देश्यों  पर गंभीरता से सोचने की ज़रुरत है |

इन से जुड़े हुए कई प्रश्न हैं जिन पर आपको अपनी ज़िन्दगी में चिंतन करना होगा – जैसे, हमारे देश को किस प्रकार के नागरिक तैयार करने की ज़रूरत है; हमने जो यूनिवर्सिटी में सीखा है वह हमें किस प्रकार से सबके साथ जीना सिखाता है, खास कर उनके साथ जो हमसे भिन्न हैं, और, उनके साथ साथ हम कैसे आगे बढ़ें विकास की ओर| शिक्षा हमें ऐसे सवालों के जवाब खोजना सिखाती है; उनका तैयार जवाब सिखाना शिक्षा का काम नहीं है| वह तो समय के साथ  अज्ञान की परतों को धीरे धीरे  हटाने की क्षमता बनाने के बारे में है; गंभीरता से किसी मुद्दे पर सोचने के बारे में है; सही प्रश्न पूछने की क्षमता बनाने के बारे में है; सबूतों के आधार पर तर्क देना और सही और गलत की छानबीन करना और स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुँचने के बारे में है; जीवन और जीवन में आंतरिक सुंदरता को समझने के बारे में है | यही तो है शिक्षा का मूल उद्देश्य | बाकी सब तो, मेरे विचार से, गोरख धंधा  है!

शिक्षा विकल्प बनाने के बारे में है – चाहे वह राजनीतिक दृष्टिकोण या सामाजिक स्थितियों के बारे में हो। शिक्षा एक माध्यम है जो लगातार परिवर्तन लाने के लिए सही तरीकों की खोज करने के लिए है। स्नातक होते ही आपके सामने बड़ा सवाल यह  होगा कि आप शिक्षा के मूल विचारों की  और  विद्यापीठ के मूल प्रस्तावों का इस्तमाल कैसे करें| इसका जवाब खोजने की प्रक्रिया इस प्रकार की है – जब भी आपके सामने कोई मुद्दा आये, तो पहले आपको उससे सहानभूति दिखानी होगी चाहे वह कितना भी आपके विचारों से अलग क्यों न हो; यह आपको उस मुद्दे के हर पहलू  के बारे में सोचने के लिए मजबूर करेगा | फिर आपको उस मुद्दे को अपनाना होगा – उसके हर तत्व को समझना होगा और उसको आत्मसात करना होगा| उसके बाद आप उसे मुद्दे के तत्वों को बदलें, नया रूप दें  और फिर उसका अमल करें| यह जो   empathise, own, dissent, design और do की प्रक्रिया है, यह आपको अपनी शिक्षा का सही तौर से इस्तमाल करने का ढंग बताती है| इसमें एक विचार के प्रति सहानभूति रखना  और फिर उसी से डिस्सेंट या मतभेद करना बहुत ज़रूरी है | शिक्षा में,  यह, क्रिटिकल थिंकिंग की प्रक्रिया है| चाहें आप संगीतकार हों और राग  भैरवी गा रहे हों तो आप को सोचना होगा कि हम किस प्रकार से आसपास की राजनीति के मुद्दे को आपने राग से डिस्सेंट  करें या उसे उभारें| या तबले के उस्ताद किस प्रकार से अपने वाद्य से इस बात पर रिफ्लेक्शन कैसे करेंगे जो उनके दिल में हो|  यही तो आपके आस-पास के वातावरण को समझने और परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को समझने का मतलब है| यही तो है शिक्षा का  इस्तमाल करने का ज़रिया और इसका उद्देश्य|

यहाँ पर एक बात और कहूंगा कि आज की शिक्षा और शिक्षक, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, दोनों ही ने इस प्रकार से क्रिटिकल थिंकिंग या स्वतंत्र सोच पाने  की काबलियत अपनी कक्षाओं में पनपने ही नहीं दी |  यही  एक महत्त्वपूर्ण कारण  है कि हम अपने ओर चल रहे घमासान युद्ध को तो न रोक पा  रहे हैं और न ही उसे एक नयी दिशा दे पा रहे हैं |

प्रिय स्नातको, अंत में आपसे से एक और चीज़ कहना चाहूंगा | आप ज़िन्दगी में कभी भी आशा की डोर मत छोड़िएगा | जब आप निराश हों, तो उन लोगों को याद करें जिन्होंने अपनी व्यक्तिमत्ता (idividuality), अपनी विशिष्टता को बनाये रखने के लिए संघर्ष किया है।  जब आपका सामना किसी धर्मांध या bigot से हो तो अपनी संस्था के संस्थापक का शांत और सहनशील चेहरे को याद करें | जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो आपके दर्द को नहीं समझता है, तो याद रखें कि उसे भी मदद की ज़रूरत है। अगर आप इस स्मृति को दिमाग में रखेंगे तो वह आपको अपने विकास का मार्ग ज़रूर दिखलाएगी |  यही तो है वह आध्यात्मिकता जिस पर आपको ध्यान देना होगा | तभी आप एक वास्तविक स्नातक, एक वास्तविक शिक्षित व्यक्ति कहलाएंगे।

आपके परिवार को, आपके शिक्षकों  को और आपको, आपके स्नातक बनने की बधाई | मैं आपके सभी सपनों के साकार होने की कामना करता हूँ| धन्यवाद|